( तर्ज - जग में हीरा मिलत व ठीना ० )
बन्दे ! कैसो काल सरेगो ? ॥ टेक ||
खींचातानी बडों - बडों की ,
वाहीमें गरिब मरेगो ।
देहाती को नाम जपे और ,
शहरी जेब भरेगो ॥ बन्दे ! ॥ १ ॥
मतलब की आजादी आयी ,
किसके पले परेगो ।
बापू तो मर गयो बोलकर ,
देश बडो सुधरेगो || बन्दे ! ॥ २ ॥
घर - घर बच्चे बहुत बढे है ,
कैसो पेट भरेगो ? ।
बिन अक्कल की चली जिन्दगी ,
क्यों नहीं देश जरेगो ? ॥ ३ ॥
सब साहब बननेको चाहे ,
खेती कौन करेगो ?
तुकड्यादास कहे , हरि मालिक ,
कब लौ धीर धरेगो ? ॥ ४ ॥
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